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Saturday, January 2, 2021

My First Solo Trip

This was the first time I had gone to Himachal All alone, or you can say it was my solo trip which was unplanned. Actually I was going back to delhi from Chandigarh but i got the bus for bhuntar. So I decided to go on adventure. But while travelling, bus faced the jam on Manali highway of 8 hours, yes you heard it right, 8 hours! So during that time I talked to a group of 7-8 boys who were going to kasol in the same bus. They were all from different states, We talked the whole night. Bus reached Bhuntar around 6am, Then we dispersed and I was solo again. I searched for hotel for almost 5 hours while cursing my decision of getting here. After struggling a lot I found a hotel
                         After resting sometime, I went to Manikaran Sahib, had my Langar, got freshed in spring of hot water there, I didn't want to come but it was going to be dark soon. I wanted some food for night so I searched for store while coming back to hotel finally I found. I took some food items and came back to hotel but I realized that i forgot to take the change from store. I ran back to the store and aunt of the store recognised me. She was really humble and kind said that Son,I was calling you from the behind but you didn't Heard, I was Upset little bit because you Forgotten your money. after  Hearing these kind words by her made my day. I came back to home and went to sleep. I was tired after struggling alot. Next morning, Vikas bhai message me that 2photographers from UP have came to your side get in touch with them. I messaged them, got there location which was 6km far from my hotel.
This morning I was feeling good, I packed my luggage, kept it at hotel reception and walked towards Manikaran sahib with some essentials where those guys were waiting for me. I almost waited for 15 minutes for the bus when I thought I'll be Late for the Destination I started Waking towards them, 
When I was about to reach and then I called them they told me that they caught the bus in the middle of the Destination, but I didn't So I told them to reach I'm waiting for the Another bus 
 After 4 -5 min they called me back and said They were in traffic jam, come on You can Reach it's about 500 Me from your Location so i ran like madly to reach the bus. As i was just about to reach near the bus, the bus moved. I was thirsty and breathing heavily. I went to roadside shop, an old couple were making parantha. I asked for the price of water bottle, Uncle said 30 Rs without a look at me. Aunty saw me gasping and asked me politely. And she told the uncle to get only 20 Rupees from child. I was overwhelmed again for her humbleness. I thanked them and went ahead. While walking I found cute dogs who were probably hungry, came hovering around me 
         I bought biscuits from a nearby shop and fed them. I played with them, I talked with them,  they were lovable. I took some pictures to cherish the memories, On the way there, we found an aunt who was coming from a nearby village with a basket of woods she was climbing the hills, we requested to take her photo, she said yes take it, we clicked some photos and from there When we were going to leave, Aunty ji stopped us and said that dear sons do not go towards the river, there is danger, some tourists have slipped away now, So please son do not go there There was sweetness in her voice, how sweet she was, I really understood the love of the hill people there that day, they were amazing 
                  Then I realized the importance of this trip, It was all about survival, enjoying, hearing the experiences of others, my overwhelming experiences, humbleness of people who Living there.
And just because of this i was able to write this story ✨

Wednesday, July 12, 2017

Something About "Dreams"

               सपनें हमारे लिए कुछ न कुछ सन्देश छोड़ जाते हैं जिनमे से कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे और उनमे भी जो कुछ अच्छे होते हैं हम उन्हें पूरे होने की कामना करते हैं और जो बुरे होते हैं उन्हें भूल जाने की या न होने की खैर, सपनों की एक खासियत अच्छी होती है कि वो "सपने" होते हैं जिंनका वास्तविकता से काफी दूर का फासला होता है.  "सपनें" जिनमे से कुछ हमारे लिए पता नहीं कौन सा सन्देश लेकर आते हैं जो पता नहीं हमें क्या बताना चाहते हैं हम स्वयं नहीं समझ पाते हैं और एक दिन जब वो क्षण आता है जब हमें उस सपने की झलक महसूस होती है तब ये होता है कि हाँ ये तो मेरे साथ पहले भी हो चुका है या शायद हम पहले भी यहाँ आ चुके हैं, दरअसल ये जरूरी नहीं की ये कोई पुनर्जन्म वाला हिसाब किताब हो या फिर किसी फिल्म में दर्शाया गया कोई सीन, कुछ सपनों में जमीन भी होती है जो कभी कभी वास्तविक होती है
                देर रात तक शॉपिंग की वजह से आज थोड़ा लेट सोया था, थोड़ा क्या उसे ज्यादा ही कहेंगे मध्यरात्रि से 2 घंटे लेट सोना 'थोड़ा' नहीं कहलाया जा सकता और वैसे भी सोशल मीडिया ने लगभग लोगों की नींद को काफी हद तक कम कर दिया है और हास्य तरीके से देखा जाए तो शायद इसी वजह से लोगों के सपने बहुत कम हो गए हैं या यूं कहें की लोग अब खुली आँखों से ही सपने देखने लगे हैं. खैर, आज मैंने बड़ा ही अजीब सपना देखा और अजीब भी किस तरह का जिसकी केटेगरी के बारे में भी मुझे कुछ पता नहीं सुबह उस सपने के ख़त्म होने तक, जब तक कि मैं नींद में ही था मैंने उसके अंत होने तक सोंच रहा था कि इसे अपने ब्लॉग में लिखूँगा यही मैंने उस "लेडी" से भी वादा किया था जो उस सपने का मुख्य किरदार थी और अजीब बात तो ये की उस सपने में "मैं" तो था पर फिर भी दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था महसूस कर रहा था, सुन रहा था और देख भी रहा था पर फिर भी वहां नहीं था...सपनों की यही तो एक बात होती है कि कुछ याद रहते हैं और कुछ बिल्कुल धरातल से ही गायब हो जाता हैं उसमे याद रह जाता है तो सिर्फ उनकी शुरुआत और उनका अंत

               एक सुहानी सी सुबह अपने देश से दूर जर्मनी के किसी एक छोटे से शहर में किसी छोटे से चर्च के हल्की हल्की ओस से भरे हरी घास वाले लॉन में लगे झूलानुमा एक लंबी सी मेज़ पर हम दोनों बैठे थे वो मुझे अपनी आप बीती सुना रही थी और पता नहीं मैं किस भाषा में उससे उसकी कहानी सुन रहा था शायद सपनो की भी अपनी अलग एक भाषा होती है जो सिर्फ सपने में मौजूद लोग ही सुन और समझ पाते हैं, पता नहीं ऐसा क्या था उसकी अपनी कहानी में जो एकटक मैं सिर्फ उसे सुन रहा था और जाने ऐसा क्या था उसकी कहानी में जो कि मेरी आँखों में हल्के हल्के आंसू ले आया था..."आंसू" जो की मुझे दिख तो नहीं रहे थे पर महसूस साफ़ साफ़ हो रहे थे...सुबह चढ़कर दोपहर में परिवर्तित हो चुकी थी और दोपहर उतर कर शाम में अब उसकी कहानी ख़त्म हो चुकी थी और मैं पूरी तरह भावुक हो चुका था भीनी आंखों से मैंने उससे विदाई ली और अपने वापस अपने देश आ चुका था.....इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इंडियन एयरवेज की उस फ्लाइट से उतरते ही सुबह की 6 बजे की स्नूज़ होकर पांचवी बार बज रही अलार्म को मम्मी ने स्लाइड से बंद करके मुझे जगाकर ज़ोर से चिल्लाते हुए कह रहीं थी की "आज ऑफिस नहीं जाना क्या ??"

Friday, March 31, 2017

इनरलाइन पास By उमेश पन्त सर



डिअर उमेश पन्त सर
       बहुत खूब था आपका यह यात्रा वृतांत, जितना लिखा है शायद उतने शब्द भी कम हैं. सच में यात्राएं कितना सुकून देती हैं- और आपकी यह यात्रा सच में बहुत खूबसूरत रही थी.
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दिल्ली के बारे में जो आपने कहा वो बिलकुल सही है. हालांकि दिल्ली के बारे में काफी लंबा अनुभव नहीं परंतु एक दिन के सफर में काफी कुछ जान लिया था इस शहर के बारे में. आप इस शहर में रहते हुए भी एक दूसरे से अंजान रहते हैं, किसी को भी आपसे मतलब नहीं होता यहाँ.....इंसानों से परे यहाँ तो लोग रास्ते तक नहीं जानते किसी को पथ प्रदर्शित करने के लिए...लगभग 5 घंटे में एक व्यक्ति आधी दिल्ली घूम सकता है..परंतु उस दिन मैं और Ankit लगभग 9 घंटे आधी दिल्ली पैदल ही घूमे....खैर..बताऊंगा तो यह कहानी भी बहुत लंबी हो जायेगी
     
     ज़िन्दगी की भाग दौड़, नौकरी, बंद पड़ी घडी की सुई की तरह बोरिंग एक ही जगह ज़िन्दगी बिता देना सच में यह बहुत दुखद है उन लोगों के लिए जो "यात्राएं" नहीं करते, यह ज़िन्दगी यात्राओं के बिना कितनी नीरस है.....आपकी यह यात्रा कितनी रोचक थी, बिलकुल सचित्र वर्णित किया आपने सब कुछ, एक दम लाइव आँखों के सामने सा आ गया सब कुछ...दिल्ली से आदि कैलास, सच में बहुत अद्भुत रहा होगा ॐ पर्वत, आदि कैलास और रास्ते की दुर्गम चढ़ान-उतरान का दृश्य.....सच में अनमोल था आपका वह इनरलाइन पास 😃.
          हालांकि आगे दुर्गम रास्ते भी मिले आपको और आपने उसे पार भी किया, पर यही तो एक ख़ास पड़ाव था आपकी यात्रा का....यात्रा वृत्तांत में और ख़ास बात थी जैसे की आपने वर्णित किया था कि यात्राओं के बीच मिलने वाले अंजान लोग, जिनसे हम पहले कभी मिले भी न थे उनसे बिलकुल करीबी जैसा रिश्ता बन जाता है, बिलकुल ठीक यही हमारी हाल ही कि यूपी के मिर्ज़ापुर यात्रा में हुआ जब हम सभी अपने मित्र की शादी में शरीक होने गए थे, रात में वापसी के दौरान लौटना मुश्किल हो गया था तो कैसे रास्ते में मिले उस अजनबी ठाकुर परिवार ने हम 8 लोगों की टीम को 5 स्टार होटल से भी बढ़कर सुविधाएं दी थी...सच में इतना बड़ा ह्रदय लाते कहाँ से हैं ये अजनबी लोग जो मुसीबत के वक़्त फरिश्ता बनकर आते हैं और बिना चूं किये हमारे लिए निश्वार्थ भाव से इतना कुछ कर देते हैं.
         
        आपकी यात्रा में आपके साथ आपके मित्रों की भी सराहना करनी होगी, खासकर रोहित जी की...कितना साथ दिया था उन्होंने आपका, यात्राओं में मित्रों की भी अहम् भूमिका रहती है जैसे हमारे मित्र पं शुभम, Sharad, Ankit, Amar और सुनील...हम भी कुछ यूं ही गुजरे थे...खैर हमारी यात्रा कभी इतनी लंबी और रोचक नहीं रही पर मित्रों के साथ यह रोचक हो जाती है और यात्रा का आनंद दुगना हो जाता है....
                 नैल के जंगलों में गुजरी उस भयावह रात का वर्णन, सच में बहुत भारी रही होगी वह रात...और हाँ मुझे ख़ुशी मिली की आपको आपका बैग वापस मिल गया, उन दोनों बच्चों ने तो कमाल ही कर दिया था....बीच में मुझे अफ़सोस हुआ था कि आपका बैग आपसे दूर हो गया, पर नियति की चाह थी आपकी कहानी उन्हें सुननी थी और आपको आपका बैग मिलना था...पढ़ते पढ़ते मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी जैसे मुझे मेरा बैग मिल गया हो...पर कन्फ्यूज्ड हूँ इस बात को लेकर की आपका कैमरा कहाँ था इस बीच, समय मिले तो बताइयेगा कभी.
                आशा करता हूँ की कभी हमें भी सौभाग्य मिलेगा आपसे मिलने का और ऐसी यात्रा का, स्पेशली अगर आदि कैलास का कभी सफर रहा तो आपकी "इनरलाइन पास" साथ रहेगी...और हाँ सर "ह्यांकी" जी से जरूर मिलना चाहूंगा...शीर्षक उनसे ही मिला है आपकी पुस्तक का.
          अब अंत में बहुत ख़ुशी हुई आपका यह वृत्तान्त पढ़कर और आशा करता हूँ की आगे भी कुछ अच्छा पढ़ने के मिलेगा आपसे...और एक यात्रा...और कुछ 100 पन्ने... आगे की यात्राओं के लिए शुभेक्षाएँ 💐💐

Thursday, March 23, 2017

World Water Day 💧💧

दिनांक 23 मार्च 
रात्रि 10 बजे
             

 "विश्व जल दिवस"/ "World Water day"
        
       शीर्षक को देखते हुए आप सोंच रहे होंगे की जल दिवस तो 22 मार्च को होता है तो शीर्षक 23 मार्च को क्यों...जी हां "जल दिवस" को 22 घण्टे गुजर चुके हैं....दरअसल यही तो खामियां हैं हमारी की हम सब एक दिन विशेष पर ही किसी व्यक्ति या occasion को याद करते हैं....हमारी अभिव्यक्ति में शायद यह भी जुड़ चुका है कि एक दिन में सब कुछ याद कर लेते हैं और दूसरे दिन सभी कुछ भूल जाते हैं......ठीक ऐसे ही अभी कुछ दिन पहले *विश्व गौरैया दिवस* था..टैगलाइन से कुछ को तो अभी पढ़ कर याद आया होगा अरे हाँ यार "गौरैया"...जैसे ही गौरैय्या दिवस आया वैसे ही सोशल मीडिया में गौरैय्या की फोटोज शेयर होने लगीं, पर शायद ही बचाने की कवायद किसी ने की हो....शायद आप सभी शक्ल भी भूल गए होंगे गौरैय्या की....बचपन की याद है एक 

जब मम्मी सूप से चावल बीनकर टूटे हुए टुकड़े छत पर बिखेर देतीं थी तो सैकड़ों गौरैय्या आकर उन्हें चुगती थीं...पर अब यह सिर्फ एक "याद" ही बन गयी है......खैर बात "जल दिवस" से चलकर गौरैय्या दिवस तक आ गयी पर मोटिव यही है कि बात सभी करते हैं और सिर्फ एक दिन विशेष पर...
                              जब छोटा था तो एक वाक्य पढ़ा था कि "मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं" पर क्या सच में ?? मुझे तो इस कथन में तनिक भी सच्चाई नजर नहीं आती है, प्रकृति ने मनुष्य को सिर्फ दिया ही दिया है पर मनुष्यों ने क्या किया...शायद कुछ नहीं....उदाहरण आपको शहरी भीड़ भाड़ से दूर किन्ही शुदूर जंगलों में जाकर मिल जाएगा....और आप स्वयं तुलना कर सकते हैं शहरी,भीड़ भाड़ और बिना आबादी वाले जंगलों और पहाड़ों के बीच जहाँ नदियों का पानी शहर में बहने वाली नदी से कहीं ज्यादा स्वच्छ है, जहाँ बहने वाली हवा शहर की दम घोंटने वाली हवा से कहीं ज्यादा स्वच्छ है और जहाँ नदियों, पहाड़ों और पेड़ों को किसी मानवीय संरक्षण की आवश्यकता नहीं है...वह स्वयं में फल फूल रहे हैं..प्रकृति स्वयं में ही इतनी सक्षम में है कि उसे किसी भी "स्वार्थी" भाव मनुष्य की देख रेख की जरूरत नहीं....जिस तरह से मनुष्य प्रकृति से निर्मम व्यवहार करता है ठीक उसी तरह से यदि प्रकृति मनुष्यों से निर्मम व्यवहार करे, भूकंप लाये, आकाशीय बिजली गिराये और बाढ़ उत्पन्न करे तो हमें उस पर आपत्ति जताने का कोई हक नहीं...मनुष्य को स्वयं को प्रकृति के बिना रहने की कल्पना भी करना कितना "भयावह" महसूस कराएगा....पर शायद हम सभी को आज समझ नहीं आएगा...एक दिन आएगा जब प्रकृति भी एक दिन "गौरैया" हो जायेगी.
और संभवतः हम सब भी.
            खैर, गौरैय्या का तो संरक्षण हम सभी समय रहते कर नहीं सके....प्रकति का संरक्षण हम अभी भी समय रहते कर सकते हैं....या "स्वार्थी" भाव से आप यूं समझ लीजिए की आपको स्वयं को "गौरैय्या" बनने से बचाना है...और आप स्वयं को संरक्षित कर रहे हैं 👍👍
             "World Water Day" तो बहाना था दरअसल इसी के जरिये आपको समझाना था....बाकी आपकी मर्ज़ी...गौरैय्याओं को दोबारा देखना पसंद करूंगा..आप पर छोड़ता हूँ. 🙏🙏

Saturday, October 1, 2016

My Love #MSD Forever 😍

Day:- October 1st, 2016

        Finally Recently I Watched My Idol's Biopic. #MSDhoni !!!!
             Yes, they revealed the struggles the Great man faced to be in this position now..😓
Peoples Loved him For his Success and Flexibility, People Hate him without Know his #Hidden Vision Nature.
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And #Sushant You just nailed it man, This one movie will take You to The next level and the hard work was clearly visible and how much effort u took to resemble the small small mannerism the LEGEND did..You just increased the love and respect we have with him #Mahi 😍,
And the
#NeerajPandey Hats off for the Characterisation, and Showed ur Brilliance in the Screenplay, #Satyaprakash character was the fun part.
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finally, The best ever biopic it will be forever about a Cricketer. #MSD Forever #An Inspiration
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Biopic Of MSD teaches You
Don't Forget To Your Background Co- Supporters Like Your Father, Mother, Sister Friends, #LifePartner and Your Teachers Too ,Cause They are the One and Only persons Who Cares About You, Who Motivates You and Who Teaches You..How can You Grow Up in Your Life..How Can You Survive in Your LifeLine. Don't Forget him After Your Success in Life.
Cause They have a important Roll in Your Life Like 👇👇
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MSD's Mother-She Supported him To Grow Up within Life..His Study/Game Time, She Prayers For His Winning Moment.
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Like MSD's Father - Always Cares For His Future
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Like MSD's Sister She Always Support him in his Studies, Carrier, and Cricket Too.
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Like MSD's Teacher and Coach- Who identified The Talent Of a Future WorldClass Sharp wicket Keeper and worlds BatsMan..Coach Who sided with The First Stage to Till Now Time.
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Like a Lady Luck- "Lady Luck" I Mentions but it's Doesn't Mean that the "Lady Luck" Required Into Your Life in Start Of Your Life. Yeah!! Obviously First of all Study,Job and Carrier and Then Your Lady Luck Can Make You Perfect in The Future Carrier, Then She Will Help You To Fight With internal and External Blames and Problems and She Will Help You To Achieve success in Your Life.
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And Last But Not The Least..Your Buddies, Your Carrier Conscious Thinker, Your #BestFriends- Like MSD's Friends- They were Played a Most Important Roll in MSD's Success...They Helped Him To Achieve This Position...They Are The One And Only Traveller..Gets A Happiness To Help MSD....
       So that's Why I can't Lose My Best Friends, Cause They Are also Inspiration of Mine, They Always Supports Me, Cares About My Feelings and Always Motivated Me to increase My Writing Skills and My Photography. 😊
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Same here My #Inspiration #MSD  Not Forgotten Those Friends, Teacher and his First Lady Luck.
That's The Transpiracy of Our Captain Cool..He Struggles Most To Get Success In his Life. so GuYss Don't be Afraid To Face Difficulties in Your Life ...Let's Play Against Them...Duck Them, let's Shot To Cover Drive, Straight Drive and Defend Them. If You can Control on Your Mind and Work Hard Then Definitely You Will Get Success Like MSD.
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Thanks MSD for Being My Inspiration 😊😊
#AnupAryan

🙏🙏🙏🙏

Monday, September 5, 2016

कुछ शब्द "गुरूजी" के लिए 🙏🙏

8वीं पास करके पहली बार सरकारी कॉलेज में एडमिशन लिया था.
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सरकारी नियमों के अनुसार एडमिशन के मुताबिक 1 जुलाई से ही क्लासेज स्टार्ट हो जाती हैं
चूंकि पहली बार सरकारी कॉलेज में गया था और उस समय हम लोगों के जेहन में हव्वा भी था कि यहाँ गुंडई होती है और लड़के गुटों में चलते हैं इस वजह से डरते डरते मुझे पूरा हफ्ता हो गया था.
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पापा और मम्मी के डांटने पर मुझे आखिर 1 हफ्ते बाद कॉलेज जाना ही पड़ा. कॉलेज का पहला दिन किसी मित्र की बात छोडो दूर दूर तक कोई जान पहचान का भी न था.
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8 दिन बीत चुके थे फिर भी मैं किताब न लेकर गया था.. मैं सबसे आखिरी सीट पर किताब न होने की वजह से मुंह छुपा कर बैठा हुआ था...पहले पीरियड में सर आये बिना किसी से कुछ पूंछ तांछ किये पहले आधे घंटे व्यतीत किये इसके बाद थोड़ा बहुत पढ़ाया फिर दूसरा पीरियड आ गया वो सर चले गए...और अब बारी थी दुसरे सर की वो आये और वैसे ही चले गए....
        और अब तीसरा पीरियड था हमारे वर्ग के अध्यापक (कॉमर्स के) जिन्हें हम सब और पूरा कॉलेज ही "गुरूजी" कह कर पुकारता था, क्लास में आये और बड़े सलीके से बुक्स टेबल पर रखी, मैंने अभी तक 2 अध्यापकों को देख चुका था वो आये और हम बच्चों से ही किताब मांगी पर "गुरूजी" का नियम ही अलग था वो स्वयं अपनी किताब अपने पास रखते थे....उन्होंने एक नजर पूरी क्लास को देखा और एक हलकी मुकुराहट के साथ उन्होंने बिना किसी से कुछ पूंछे किताब खोली उसमे से कुछ पन्ने पलटे और और चौक उठा कर ब्लैकबोर्ड पर लिखना शुरू कर दिया...फिर उन्होंने सबसे कहा "वही पन्ना खोल से जहाँ से कल ख़त्म किया था " 👆पूरी क्लास किताब खोल कर पन्ने टटोलने लगी ...इसके बाद "गुरूजी" ने सबकी ओर निगाह फेरी और मैं सीट पर दुबका हुआ बैठा था उन्होंने दूर से मुझे देखा और मेरे पास आये...आँखों में देखकर बोला "किताब कहाँ है ?? 🤔😳
          मैं बोला गुरु जी अभी तो नहीं ली मैंने,,,बस इतना बोलना था मेरा और गुरु जी ने मेरा बायां कान जोर से पकड़ा और सीट पर से पूरा जोर लगाकर मुझे अपनी जगह से हिला डाला और अपने अंदाज में पूरी क्लास से कहा "मरा कहीं का बच्चा किताब ही नहीं लाता और टीचर पढ़ाये पढ़ाये मरा जाता है, टीचर पढ़ाये तो पढ़ाये कैसे " मैं पूरी बात उन्हें समझाऊं उससे पहले ही उन्होंने मेरे कान का बीमा और मेरा इंट्रोडक्शन पूरी क्लास में कुछ इस तरह कर डाला...उस दिन क्लासेस ख़त्म हुईं तो दिल में सरकारी स्कूल वाला हव्वा और बढ़ गया और उससे ज्यादा तो मुझे "गुरूजी" पर बहुत गुस्सा आया और उन्हें बहुत कोसा 😥😥😣😣...
                  लेकिन जैसे जैसे दिन बीते और हमें छह,आठ महीने हुए धीरे धीरे क्लास से बच्चे बंक मारते गए और 60 बच्चों की क्लास में कभी 20 कभी 25 तो कभी 10 ही स्टूडेंट्स रहते और टीचर्स आते क्लास में पूरे बच्चे न देखकर वापस स्टाफ रूम चले जाते, पर गुरु जी चाहे 5 ही बच्चे आये हों वो ठीक हमेशा की तरह आते और वही क्रिया दोहराते...पर हाँ उस समय मेरे पास किताब आ गयी थी..😃मैंने भी कॉलेज के 2 साल कभी बंक नहीं मारा और जब भी जाता गुरु जी ठीक उसी तरह हमें पढ़ाते..इस तरह जिन्हें मैंने कभी कोसा था उन्होंने हमारे दिल में अपने लिए जगह बना ली थी...जब क्लास में 10 15 बच्चे होते थे तो हम यों ही टहलते रहते थे लेकिन जब गुरु जी का पीरियड होता था तो मैं भी उन्हें इग्नोर न करता था....
                     मेरी पढाई में कई अध्यापक आये कुछ स्कूल में, कुछ कॉलेज में तो कुछ कोचिंग में आये लेकिन उन सबमे "गुरूजी" सबसे अलग स्थान रखते हैं.....मुझे हमेशा इस बात जी ग्लानि रहेगी की "गुरूजी" के सब्जेक्ट में कभी उस तरह परफॉरमेंस न दे सका जिस तरह उनका पढ़ाने का सलीका था...अब वो समय वापस तो न ला सकूंगा...ऐसा नहीं है कि आज "शिक्षक दिवस" है तो आप मुझे याद आये..जब भी कहीं किसी शिक्षक की बात होती है तो आपका चेहरा पहले सामने आता है और आज जब मैं अपनी "होम क्रेडिट" कंपनी में नौकरी की ट्रेनिंग में गया और वहां के ट्रेनर "प्रफुल्ल सर" की कर्तव्यनिष्ठा,वही आपके जैसा आचरण और सिखाने की प्रबलता को देखकर आप बिलकुल समक्ष आ गए और ये तो आपका ही दिन है तो आप शायद मुझे भूल जाओ पर हाँ आप मुझे जरूर याद रहोगे 🙏🙏 स्कूल के दिनों में आपका आज्ञाकारी तो न बन सका पर हाँ आपकी कर्तव्यनिष्ठा का फैन जरूर हूँ अब तक.....🙂🙂
                                                 आपका नादान शिष्य
                                                  अनूप आर्यन 🙂

Tuesday, August 23, 2016

Unforgottable Memory 😔😔

अब तक ब्लॉगर पर मुझे लगभग दो साल पूरे हो चुके हैं लेकिन इन दो सालों पर मैं कुछ ख़ास नहीं लिख पाया...पर चलिये आज कुछ लिखता हूँ आप सब के लिये न सही मेरे लिए बहुत खास लेख होगा यह...और हिम्मत और स्मरण शक्ति का उपयोग करके लिख रहा हूँ, और उसके लिए बारे में लिख रहा हूँ जिसके कारण मैंने लिखना सीखा और यहाँ ब्लॉगर, वर्डप्रेस की दुनिया तक पहुँच गया....हाँ ये एक तरह का मोटिवेशन ही समझिये या फिर एक तरह का एट्टीट्यूड की मैं किसी भी क्राइटेरिया में कम नहीं....
                     खैर छोड़िये !!! आगे बढ़ते हैं ..यूँ तो मुझे छह साल हो गए हैं फेसबुक पर लेकिन पिछले 4 सालों से फेसबुक पर ज्यादा ही हम एक्टिव हुए। जब हम हाई स्कूल में थे तब उस समय फेसबुक का ट्रेंड सबके जेहन में था..फर्स्ट ईयर ज्वाइन करते ही दिमाग में थोड़ा सेल्फ डिपेंड होने का ख्याल आया-उस समय सेल्फ डिपेंड भी मजबूरी थी मेरे लिए और वो मजबूरी थी मेरे पापा का "एक्सीडेंट"..उसी समय संयोग से मुझे मेरे मित्र के द्वारा एक जॉब मिल गयी 'मेरी मनपसंद जॉब जैसा की किसी बड़ी कंपनी के लिए काम करना, हालांकि मेरी सैलरी मात्र 2000 ही थी और ओहदा सबसे छोटा एक रनर का..लेकिन मेरे लिए ये एक रिवॉर्ड जैसा था कि हाँ मैं भी रिलायंस जैसी बड़ी कंपनी का एक छोटा सा हिस्सा हूँ...पहली सैलरी मिलते ही मैंने एक फोन ख़रीदा "जावा" सपोर्ट माइक्रोमैक्स क्यू3, फ़ोन के आते ही वेब, फेसबुक की दुनिया से संपर्क और गहरा हो गया और यही से शुरुआत हुई मेरी और उसकी दोस्ती और प्यार 😌 की कहानी..."प्यार" 🤔🤔 हाँ कह सकते हैं प्यार की कहानी भी...
                       बात 3-4 साल पहले की है मैं, मेरे चाचा, और मेरा एक मित्र विंध्याचल जा रहे थे. ट्रैन के सफर में कानपुर और विंध्याचल की 265 किलो मीटर की दूरी कम् से कम 5 घंटे की तो है ही तो टाइम पास के लिए आदत अनुसार फ़ोन निकाला फेसबुक एप्प ऑन किया उस समय रेडियो पर "याद शहर" का दूसरा सीजन स्टार्ट हुआ था तभी मैंने पहली बार सुना था नीलेश सर को तभी से "फैन" हो गया था मैं उनकी आवाज़ का तो फेसबुक पर उनके पेज को फॉलो भी करता था..नीलेश सर ने उस शाम सुनाई जाने वाली कहानी की डिटेल्स वाला पोस्ट अपडेट किया था और मैं उनकी उस पोस्ट पर आये लाइक्स का ब्यौरा लेने लगा की कहाँ कहाँ से लोग उन्हें सुनते हैं...उनमे से कईयों को मैंने अपनी फ्रेंड लिस्ट में ऐड किया था जिससे मैं उनसे नीलेश सर के बारे में और उनकी कहानियों के बारे में जान सकूं...वहीँ से मेरी और "उसकी" भी मुलाक़ात हुई..."उसने" भी उस पोस्ट पर लाइक किया था ..मैंने आव न देखा ताव बिना सोंचे समझे "फ्रेंड रिक्वेस्ट" भेज दी....अक्सर होता है न की लड़कों का ये अट्रैक्शन की प्रोफाइल देखे बिना ही रिक्वेस्ट भेज देना 😊....ठीक एक घंटे के अंदर उसने मेरी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली
हम तब तक इलाहाबाद पहुँच चुके थे ...बात चीत में पूंछने ओर पता चला की वो भी इलाहाबाद की ही रहने वाली है हालाकिं प्रोफाइल में लिखा रहता है लेकिन आदत के अनुसार हम फिर भी पूंछते हैं...मैंने चुटकी लेते हुए उससे पूंछा की अच्छा अगर तुम इलाहाबाद में रहती हो तो बताओ की यहाँ का मौसम कैसा है..उसने ठीक वैसा ही बताया जैसा की वहां का मौसम था..."थोड़ी बदली छाई हुई थी और मौसम सुहावना था" तब मैंने उसे बताया कि मैं भी इलाहाबाद में हूँ और विंध्याचल जा रहा हूँ...."विंध्याचल" इस जगह को लेकर मेरी उससे एक बार बहस भी हो गई थी जब उसने मुझसे कहा कि वहां ऐसा ख़ास क्या है ?? इलाहाबाद का सारा कूड़ा विंध्याचल में फेंका जाता है..इस बात पर ज्यादा बहस न हो इसलिये मैंने इस बात पर ज्यादा तूल नहीं दिया और स्वयं चुप हो गया जो मैं जल्दी होता नहीं.....
               अब आगे उस दिन से हमारी बातें और भी बढ़ने लगीं। दिन भर चैट करते रहते, रात में भी चैट करते, इस तरह लगभग छह महीने गुजर गए. फिर मैंने रिलायंस छोड़कर आईडिया ज्वाइन कर लिया  फिर एक दिन उसने मुझसे कहा कि वो दिल्ली अपने किसी रिश्तेदार की शादी में जा रही है..इसके बाद वो लगभग 3 महीने तक ऑनलाइन नहीं आयी...एक दिन ऑफिस में बैठा हुआ था सारा काम निपटा कर ऑनलाइन आ गया ..नोटिफिकेशन चेक की...चैट रिफ्रेश की, एक बार- दो बार और कई बार ठीक उसके बाद "उसके" नाम के आगे ग्रीन सिग्नल "डॉट" दिखाई दिया..उसका नाम फ़्लैश होते ही आँखों में चमक आ गई और साथ में ढेर सारा गुस्सा भी जाग गया की 3 महीने से वो कहा थी और देखो मैं कितना परेशान था....सोंचा की अब खूब उसे गुस्सा दिखाऊंगा लेकिन इनबॉक्स में टाइप करते ही सोंचा की मैं उसे "गुस्सा" किस हक़ से करूंगा 🤔 यही सोंच कर मैं नम्र हो गया और उससे शांत भाव से पूंछा की वो 3 महीने से कहाँ थी तो उसने क्या जवाब दिया वो याद नहीं रहा मुझे बस इतना याद रहा की हाँ अब वो ऑनलाइन है और मुझे उससे ढेर सारी बात करनी है...जो 3 महीने से नहीं की मैंने.
                             एक बार मेरी एक और फ्रेंड थी फेसबुक पर ही वो भी पंजाब से नाम था "प्रियंका गर्ग" उसने मेरे एक स्टेटस पर कमेंट किया जिसके बाद किसी एक और फ्रेंड ने उसके कमेंट पर रियेक्ट किया होगा तो उसे बुरा लग गया और उसने मुझे अन्फ़्रेंड कर दिया...इस मामले में मैं उस समय बड़ा सेंसिटिव था कि कोई मुझे बिना किसी कारण के ब्लॉक कैसा मार सकता है....मेरी गलती न होने के बावजूद मेरी छवि न ख़राब लगे इस वजह से मैंने "उससे" कह कर   मेरी तरफ से प्रियंका से माफ़ी मांगने को कहा उसने वैसा ही किया और मैं गिल्टी होने से बच गया..
                        फिर कुछ दिन बाद "उसने" भी मुझे अन्फ़्रेंड कर दिया इसके बाद मेरा बुरा भाग्य मेरा फोन भी ख़राब हो गया और ऑनलाइन आने के सारे रास्ते बंद हो गए ...फिर जब मैंने नया फोन लिया तब मैंने ब्लॉक होने की वजह से नयी आईडी बनाई और उसे मेसेज करके अन्फ़्रेंड करनी की वजह पूँछी तो पता चला की उसने ग़लतफ़हमी की वजह से मुझे अन्फ़्रेंड कर दिया था उसे लगा था कि मैंने उसे खुद को अन्फ़्रेंड करने के लिए बोला था इस वजह से उसने मुझे अन्फ़्रेंड कर दिया था....खैर हमने एक दुसरे से इस बारे में माफ़ी मांग ली थी और फिर से वही दौर शुरू हो गया और फिर बढ़ता गया....हम शाम को 8 बजे चैट की शुरुआत करते और चाट करते करते सुबह की अजान तक सुनाई देने लगती थी तब मजाक में हम एक दुसरे से पूंछते की मेरे यहाँ तो अजान शुरू हो गयी तुम्हारे यहाँ हुई क्या ??? 😜😜.
                         कुछ दिन बाद मैं और मेरी फैमिली कजिन की शादी में दादी के यहाँ गए हुए थे तभी मुझे 2- 3 कॉल्स आये उधर से कॉल का कोई रिस्पॉस ही नहीं आता था.  मैंने सोंचा की "वो" मुझे परेशान कर रही होगी...इसके बाद जब वो ऑनलाइन आयी मैंने उससे कहा कि क्यों परेशान कर रही है कॉल करके उसने मेरे से सीरियस मोड़ पर कहा कि वो नहीं है..मैंने कहा चलो कोई नहीं.  
               शादी की दोपहर हम सभी फैमिली के लोग एक साथ आँगन में बैठे हुए थे तभी फिर से कॉल आया मैंने इग्नोर कर दिया फिर से दोबारा कॉल आया मैंने सोंचा की अब जो भी होगा गालियां ही सुनाऊंगा उसको...मैंने कॉल पिक किया और चिल्लाने ही वाला था कि उधर से आवाज आई।   "अरे !!!"
मैं चौंक गया था उधर से किसी लड़की की आवाज़ आयी थी.
मैं बोला कि कौन हो उतनी देर से परेशान कर रही हो...उसने कुछ नहीं सुना और बोली की कॉल क्यों नहीं उठा रहे थे मैं बोला "कौन" ??
.....उसने बताया कि वो "वही" बोल रही है...मुझे यकीन नहीं हुआ की उसने सच में मुझे कॉल किया 😳😳
पर संकोच की वजह से मैं उससे ज्यादा बात न कर पाया। मुझमे यही एक आदत ख़राब है कि ऑनलाइन तो मैं बड़ी बड़ी डींगे और बहुत बड़ी बड़ी बातें कर लेता हूँ पर आमने सामने या फिर लाइव बात चीत पर मुझसे "चूं" तक न हो पाता था.
                          उसकी आवाज़ 😋 आज भी नहीं भूल सकता मैं बहुत मीठी थी....
मैंने जब उससे ये कहा तो उसने कहा कि तुम्हारी भी बहुत "स्वीट" है...मैंने मन ही मन कहा बड़ी हांकु है यार ये तो मेरी आवाज और "स्वीट" 😂😂 क्या जोक मारा है.
      इस तरह हम ऑनलाइन चैट करते करते कॉल्स तक आ पहुंचे थे..लेकिन चैट अक्सर करते थे और कॉल्स कभी कभी ही किया करते थे लेकिन जब भी कॉल पर रहते थे मैं तो कम पर वो बहुत ज्यादा बोलती थी, मौका मैं ही देता था क्योंकि मेरी तो आवाज़ ही न निकलती थी और दूसरी उसकी आवाज़ मुझे बोलने ही न देती थी 😋
               मैंने उस समय प्रोफाइल पिक लगाने का चलन नहीं रखा था और न ही अपनी कोई भी पिक लगाई थी कभी ...और लड़कियों के लिए उनकी सिक्योरिटी के हिसाब से प्रोफाइल पिक न लगाना ही सही है लेकिन इंडिया में फेक प्रोफाइल्स का बहुत चलन है और इसी वजह से हम बहुत सतर्क रहते हैं कि कहीं हमारा गेम तो नहीं हो रहा 😉😉 इन सब मामलों में वो भी थोड़ी स्ट्रिक्ट थी इसी वजह से मैंने भी कभी उससे उसकी फोटो के लिए नहीं कहा और न ही उसने कभी मेरी प्रोफाइल पिक के बारे में उसने कोई बात की लेकिन फिर भी मेरी उसे एक बार देखने की चाहत थी......यूं मैं उसे फेक समझ सकता था लेकिन वो भावनाएं झूंठी नहीं हो सकती थी और न ही उसकी आवाज़...और फिर मैं बेवकूफ न था 2 साल में उतना सीख लिया था मैंने फेसबुक से....मेरी और उसकी लगभग सभी आदतें, बातें, रुचियाँ एक दुसरे से मिलती जुलती थी. इन बातों को लेकर कभी मैं उससे कहता की तू मेरी नक़ल कर लेती है चुप चाप पता नहीं कहाँ से और कभी वो मुझसे मजाक में कहती की मैं उसके बारे में जरूर कहीं न कहीं से सब कुछ जानता हूँ 😄.
                       अब जब हम ढेरों बातें करते तो कभी कभी सीरियस भी हो जाया करते थे और कभी कभी तो ऐसा फील होता की कुछ अलग सा फील हो रहा है......हम स्टडीज, स्टोरीज, फैमिलीज़ और दुनिया भर की तमाम बातों से आगे बढ़ गए थे...वो मुझसे 2 साल बड़ी थी और स्टडीज में भी एक क्लास बड़ी..एक दिन मैंने उससे मजाक मजाक में कह ही डाला की हमारे बीच जो भी है उसे क्लियर कर की हम क्या हैं और तेरे दिल में मेरे लिए क्या फीलिंग है उसने मुझसे थोड़ा समय माँगा....मैंने भी कोई जल्दबाज़ी न की फिर एक दिन उसने मेरा ही सवाल मेरे ऊपर दाग दिया की मेरे दिल में उसके लिए क्या फीलिंग है.....मैं कह तो सकता था लेकिन दिल से उससे दूर हो जाने का डर भी रहता था इसलिये मैंने भी एक पंच मारा और बोल दिया की "देख 🖐 न तो तू मेरी गर्ल फ्रेंड है और न ही सिस्टर बस इतना समझ ले की एकदम करीबी है तू मेरी बेस्टी"...उसने मुस्कुराने के इमोजी भेज दिया....फिर एक दिन उसने मुझे एक पिक भेजी उसकी थी पिक उसकी दो आँखों वाली cropped इमेज....बड़ी बड़ी 👁👁 काली आँखें ☺ लेकिन मुझे एक तरह से गुस्सा भी आया की क्या मुझपे उसका इतना सा भी विश्वास नहीं की मुझे अपनी फोटो भेज सके लेकिन वो मुझसे गुस्सा न हो जाए इस लिए मैंने "नाइस" कहा उसने फिर से 🙂 मुस्कुराने वाला इमोजी भेज दिया....
               एक दिन फिर मैंने उसे पोक किया कि उसने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया...उसने दूसरा डायरेक्शन दे दिया लेकिन मैं डटा रहा तो उसने मुझसे जो कहा कि मैं "पॉज" हो गया 🙄 उसने भी मुझसे वही कह दिया जो मैं उसे अपनी फीलिंग के बारे में एक बार बता चुका था उसने भी मुझसे कह दिया की हाँ "प्यार" है उसे जो मुझे भी था "उससे". इसके बाद मेरी उससे कई बार बात भी हुई और कॉल पर भी बात हुई लेकिन जो मैं उससे चैट पर तो कह गया लेकिन कॉल पर कहने की हिम्मत कभी न हुई और न ही उसने कभी मुझसे कॉल पर कहा.....लगभग 6 महीने और बीत गए और फिर एक दिन मुझे अपना फ़ोन बेचना पड़ा मैं उससे बोला की मैं कुछ दिन तक ऑनलाइन नहीं आऊंगा तो वो मुझपे बरस पड़ी और कहने लगी की तू ये बात मेरे को क्यों बोल रहा है तुझे जाना है तो जाना मुझसे न बोल ये सब, शायद उसे ये लगा की मैं उससे दूरी बना रहा हूँ और उसे दिखाने के लिए ये सब कर रहा हूँ...पर मेरी भी मजबूरी थी उसने समझा नहीं...😢😢 14 नवम्बर 2014 यही वो तारीख थी जब मैंने उसे सुबह 3 बजे मेसेज किया कि "बाय फिर जल्दी मिलेंगे" उसने वही रूठा सा मेसेज किया जाओ तुम्हारी मर्ज़ी" इसके बाद मैंने उसे कई मेसेजेस किये लेकिन उसने कोई रिप्लाई न दिया मैं समझा की उसने मुझसे दूर रहने का मन बना लिया है मैंने फिर उसे गुस्से में वो सब कह डाला जो मैंने आज तक उससे न कहा था ....और वो मेरी दूसरी सबसे बड़ी गलती थी 😞😞..मैंने ही उसे फ्लर्टी, कैरेक्टरलेस्स और न जाने क्या क्या कह दिया पर उसका रिप्लाई न आया...उसे मेसेज भेजने के बाद मुझे बड़ा दुःख हुआ और मलाल भी फिर उसी दोपहर मुझे उसका कॉल आया डिस्प्ले पर उसका नंबर देखते ही मुझे ये लगा की कहीं दे गढ्ढा हो जाए वहीँ और मैं उसमे घुस जाऊं....लेकिन फिर भी गुस्से में मैंने फोनर पिक किया और उल्टा उस पर बरस पड़ा लेकिन उधर से पता नहीं शायद वो कॉल पर रो ही रही थी यूं तो वो बहुत मजबूत थी रो नहीं सकती थी उधर से उसने कहा कि उसका मेसेज पैक खत्म हो गया था और तुम मेरे बारे में ऐसा सोंचते हो 😣😣
                          मुझे बहुत गिल्ट महसूस हुआ उस समय पर उससे कुछ कह न सका मैं और मैंने कॉल कट कर दिया इसके बाद उसने मुझे ब्लॉक कर दिया और कभी कांटेक्ट न किया और न ही मेरी हिम्मत हुई . फिर एक दिन मैंने अपने भैया की फेसबुक आई डी जो की भैया कभी कभी चलाते हैं सिर्फ फ़ेसबुकिया जानकारी लेने के लिये उससे मैंने उसे कई मेसेजेस किये लेकिन वो आती फोटोज भी अपलोड करती लेकिन मेरा मेसेज सीन न करती जबकि आईडी में मेरा नाम न होकर भैया का नाम था...फिर एक दिन उसने मेसेज सीन किया और उसने मुझपे टौंट जमाया और कहा कि "अनूप आर्यन ने पीछे मुड़ के देखना कब से सीख लिया ???"
        मैं कुछ न बोला मैंने उससे कहा कि तूने मेरा मेसेज सीन क्यों नहीं किया इतने दिनों से ??? वो बोली की बगैर ऐड फ्रेंड्स जो भी मेसेज करते हैं वो स्पैम बॉक्स में जाते हैं 😒. वो इस तरह से बात कर रही थी जैसे हमारे बीच पहले कुछ हुआ ही नहीं.
फिर मैंने भी राहत की सांस ली की चलो कोई बात नहीं कुछ नहीं हुआ फिर मैंने भी जानने की कोशिश न की कि इतने दिन से वो कैसी थी.....मैं चुप रहा पर ज्यादा चुप न रहा गया पूंछ ही लिया की कहाँ थी? , क्या कर रही थी, उसने कहा कि वो बुरा दौर था बड़ी मुश्किल से बाहर आई वो और अब वो सिर्फ अपने Aim को पाना चाहती है इसलिए फेसबुक पर कम आती है 🙂..मैंने पूंछा व्हाट्सएप्प ??
कहने लगी की मैंने उससे माफ़ी मांग ली है और कभी व्हाट्सएप्प पर नहीं आएगी। फेसबुक पर वो लिखना पसंद करती है इसीलिए फेसबुक पर रहेगी और ब्लॉग्गिंग करने वाली है।।  मैंने सोंचा की क्या सच में नहीं आएगी झूंठी 😏😏
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फिर मैंने 2 दिन बाद पास्ट के बारे में पूंछ ही लिया तो उसने बोला की तू पास्ट में मत जा बड़ी मुश्किल से समझाया है मैंने अपने दिल को और जो अभी है उसे देख तुझे फ्रेंडशिप चाहिए तो बोल वर्ना अभी ब्लॉक करूँ मैं तुझे..मैं बोला - एक मिनट !! तेरे पास दिल है ??
वो बोली की हाँ अगर दिल न होता तो तू अभी मेरी फ़्रेंडलिस्ट में वापस न आया होता और हाँ अब मुझे अपने लक्ष्य की ओर देखना है और आईएएस बनना है और हाँ अगर मैं बन गयी तो इतना पक्का है कि अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को बाद में लेकिन सबसे पहले तुझे बताउंगी. इस बात पर मैं कुछ न बोला और सोंचा की मैंने उसे इतना बोला था  तो इतना गुस्सा तो जायज़ था उसका और लास्ट की लाइन ने अभी भी पक्का रखा की अभी भी मैं उसके दिल में अभी भी जगह रखता हूँ....
                  उसने फिर से मुझे एक बार ब्लॉक कर दिया और इस बार मैंने उससे बात न ही करने की सोंची और ये पक्का कर लिया की वो जो कर रही है शायद उसके हिसाब से सही ही है और अब जब उसने फैसला कर ही लिया है तो मेरा भी यही फैसला है कि मैं भी कुछ न कुछ कर के ही दिखाऊंगा.
............अब इतने दिनों जब फ्रेंडशिप डे को यूं ही उसकी याद आयी तो सोंचा कि चलो देख ही लेते है सर्च करके देखा उसने मुझे अनब्लॉक कर दिया था...पर नहीं इस बार मैं उसे तंग न करूंगा, न ही मिन्नत करूंगा, न ही माफ़ी मांगूगा और न ही उसे उसके लक्ष्य से भटकने दूंगा... सब कुछ एक विस्मरण सा है अभी हाल ही में गया था "विंध्याचल" लौटते वक़्त सोंचा की इलाहाबाद के रास्ते आते वक़्त मैं सो ही जाऊं लेकिन कम्बख्त नींद तो न आयी ट्रैन में और ऊपर से इलाहाबाद में 1 घंटे गुजारने पड़े..बड़ा असहनीय रहा की याद न करना पड़े लेकिन आसान कहाँ होता है 😒😒
          डिअर कीर्ति बड़ी हिम्मत जुटा रहा हूँ लेकिन इस बार ब्लॉक करने की बारी मेरी है।।। तुम अपने लक्ष्य से भटको मत और कुछ बनके दिखाओ तब तुम्हे देखूँगा मैं और तब तक शायद मैं भी कुछ कर पाऊँ.... याद आएगी तुम्हारी वो ऑडियो क्लिप जो तुमने मुझे मेरे बर्थडे पर भेजी थी 2 दिन बचे हैं उसके 2 साल होने को उस ऑडियो को सेव तो न कर पाया था लेकिन जेहन में अब तक जिंदा है वो आवाज़ जो शायद ताउम्र जिन्दा रहेगी...और हाँ तुमने क्या बोला की बड़ी मुश्किल से समझाया तुमने अपने दिल को....हा हा हा!!
क्या मैं बिना दिल का हूँ तुमने मुझसे तो कभी ये पूंछा ही नहीं था 😢😢.....खैर छोड़ो !! जहाँ भी रहो सलामत रहो और अपने लक्ष्य पर ध्यान देती रहो और हाँ अगर इसे पढ़ भी लेना तो भटकना मत बस ये मत भूलना की तुम्हे भूलना मेरे लिए आसान नहीं है